गोरखपुर से सटे उत्तराखंड में भारत की सबसे लंबी परिवहन सुरंग का उद्घाटन आज ऐतिहासिक रूप से संपन्न हुआ। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना के तहत सुरंग संख्या-8, जो कि 14.58 किलोमीटर लंबी है, अब देश की सबसे लंबी परिवहन सुरंग बनने जा रही है। इस शुभ अवसर पर केंद्रीय रेल, आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी और स्थानीय सांसद श्री अनिल बलूनी उपस्थित रहे।
इस परियोजना की कुल लंबाई 125.20 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 83 प्रतिशत हिस्सा यानी 104 किलोमीटर सुरंगों के माध्यम से तय किया जाएगा। पूरे मार्ग में कुल 16 मुख्य सुरंगें हैं, जिनकी कुल लंबाई 104 किमी है। इसके अतिरिक्त 12 एस्केप सुरंगें हैं जिनकी लंबाई 97.72 किमी और क्रॉस पैसेज की लंबाई 7.05 किमी है। परियोजना में कुल 12 स्टेशन, 19 बड़े और 38 छोटे पुल शामिल हैं। देवप्रयाग में स्थित पुल संख्या 06 सबसे लंबा है जिसकी लंबाई 125 मीटर है, वहीं गौचर में पुल संख्या 15 की ऊंचाई 46.9 मीटर है जो सबसे ऊंचा है।
यह परियोजना तकनीकी दृष्टिकोण से भी बेहद खास मानी जा रही है क्योंकि यह पहली बार है जब हिमालयी क्षेत्र में TBM (टनल बोरिंग मशीन) तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है। TBM ने 9.11 मीटर व्यास के साथ 10.4 किमी लंबी सुरंग खोदी, जबकि NATM तकनीक से 4.11 किमी सुरंग बनाई गई। पोर्टल 01 से पहले 600 मीटर का काम NATM तकनीक द्वारा पूरा किया गया, जबकि जनासू छोर से भी NATM का लगातार उपयोग हुआ।
भूवैज्ञानिक दृष्टि से यह क्षेत्र जौनसार समूह की चांदपुर संरचना से संबंधित है। सुरंग मुख्य रूप से चांदपुर फिलाइट नामक चट्टानों से होकर गुजरती है, जिसमें क्वार्ट्जाइट और शिस्टोज फिलाइट की उपस्थिति है। यह क्षेत्र अत्यंत जटिल भूगर्भीय परिस्थितियों वाला है। ओवरबर्डन यानी ऊपर मौजूद मिट्टी और चट्टानों की मोटाई अधिकतम 800 मीटर और न्यूनतम 70 मीटर तक है। चट्टानें अक्सर बहुत पास-पास जुड़ी होती हैं और इनमें मध्यम अपक्षय पाया जाता है।
परियोजना के भूगर्भीय सर्वेक्षण में कुल 9 बोरहोल किए गए जिनकी कुल लंबाई 2,273 मीटर रही। टीबीएम संचालन में सबसे बड़ी चुनौती निचोड़ने वाली ज़मीन की स्थिति रही, जो सुरंग के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से में पाई गई। ऐसी स्थिति में टीबीएम को बिना किसी रुकावट के लगातार चलाते रहना बहुत जरूरी होता है। इसके साथ ही, कुछ क्षेत्रों में 2000 लीटर प्रति मिनट तक जल प्रवेश की स्थिति सामने आई, जिससे निर्माण, सुरक्षा और उपकरणों की स्थिति पर असर पड़ा।
सभी सुरंगों का निर्माण कार्य एक साथ शुरू किया गया था और अब तक कुल 213 किलोमीटर की योजना में से 195 किलोमीटर सुरंग निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। 30 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग के ज़रिए निर्माण सामग्री की आपूर्ति मानसून और तीर्थयात्रा के मौसम में भी बिना किसी बाधा के जारी रखी गई, जो एक बड़ी लॉजिस्टिक चुनौती थी। इसके अतिरिक्त ग्राउट पाइपलाइन सिस्टम 11 किमी तक फैला हुआ है, जिसकी सफाई और अनुकूलन विभिन्न भूवैज्ञानिक परिस्थितियों के अनुसार करना जरूरी रहा।
इस परियोजना की सबसे खास बात यह रही कि 2014 तक इंडियन रेलवे ने 125 किमी सुरंगों का निर्माण किया था, जबकि अब यह आंकड़ा 468.08 किमी तक पहुंच चुका है। यह दर्शाता है कि पिछले वर्षों में सुरंग निर्माण की गति में लगभग 3.7 गुना की वृद्धि हुई है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना न सिर्फ भारत के लिए एक इंजीनियरिंग चमत्कार है, बल्कि उत्तराखंड के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण पहल है। आने वाले समय में यह रेललाइन उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों को बाकी देश से जोड़ने में एक नई रफ्तार देगी।