गोपालगंज जिले के भोरे मे रात्रि मे आई आंधी में सड़क किनारे लगे पेड़ के टूट कर गिरने से विजयीपुर- मुसेहरी-भोरे मुख्य मार्ग के धरीक्षण मोड़ पर यातायात अवरुद्ध हो गया । वाहन चालकों एवं क्षेत्रीय जनता को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रह था, लेकिन इससे स्थानीय प्रशासन,पथ निर्माण विभाग या वन विभाग पर कोई प्रभाव नही पड़ा । कर्मचारियों सहित सभी पदाधिकारी कान में तेल डाल कर सोते रहे । स्थानीय जनता जब जलावन के रूप में गिरे हुए पेड़ को काट ले गई तब कहीं जाकर यातायात सुचारु रूप बहाल हुआ । पथ निर्माण विभाग की एम्बुलेंस व आपदा प्रबंधन की तैयारी तो धरी की धरी हीं रह गई, वन विभाग भोरे ने भी इस सड़क पर गिरे पेड़ को लावारिस छोड़ दिया संभवतः इसका कारण इन पेड़ का इमारती लड़की का न होकर जंगली होना था ।
यह पेड़ मानको के अनुरूप था या सिरीस, बन नीम और कठजामुन आदि लगा कर सरकारी राशि को वन विभाग ने वन में भेज दिया यह अलग विषय है लेकिन जिस पेड़ से दातुन तोड़ने से लोग ‘सरकारी केस’ के नाम पर डरते हों उसका सड़क पर टूट कर गिरे होना और विभागों के द्वारा उसकी सुध न लेना आखिर क्या दर्शाता है ?
बहरहाल यातायात अब सुचारू रूप से बहाल हो गया है लेकिन रात के अंधेरे में अगर इस सड़क पर कोई दुर्घटना इस परिस्थितियों की वजह से होती तो फिर जवाबदेही किसकी मानी जाती ?