रिश्तों की भूख और रोटी की प्यास – दोनों को मिटा रही है मां शताक्षी अन्नपूर्णा रसोई
इंसान दो चीजों से मिलकर बना है – मन और शरीर। मन रिश्तों को ढूंढता है, और शरीर भोजन को। लेकिन इस दुनिया में ऐसे भी सैकड़ों असहाय और वृद्ध लोग हैं, जिनका कोई नहीं – न रिश्ता, न सहारा। ऐसे जरूरतमंदों के जीवन में स्नेह और सेवा का प्रकाश बनकर एक अनूठी पहल पिछले एक साल से लगातार कार्यरत है – “मां शताक्षी अन्नपूर्णा रसोई।”
बेटे के रिश्ते के साथ पहुंचता है हर दिन भोजन
इस रसोई की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ खाना नहीं, एक रिश्ते की भावना के साथ सेवा कर रही है। हर वृद्ध और बेसहारा व्यक्ति तक एक बेटे की तरह जुड़कर भोजन की थाली पहुंचाई जाती है — चाहे छठ हो, होली हो या दिवाली। इस सेवा में एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली गई।
42 ज़रूरतमंद, 9 किलोमीटर की परिधि, 12 गांवों तक सेवा का विस्तार
वर्तमान में इस रसोई के माध्यम से 42 असहाय और वृद्ध लोग लाभान्वित हो रहे हैं। सेवा क्षेत्र लगभग 9 किलोमीटर की परिधि में फैला है, जिसमें करीब 12 टोले या गांव शामिल हैं। यह पहल शुद्ध निष्ठा, मानवीयता और सामूहिक सहयोग का प्रतीक बन चुकी है।
सहयोग और आशीर्वाद से कर्मपथ पर अग्रसर है यह सेवा
“मां शताक्षी अन्नपूर्णा रसोई” सिर्फ एक सेवा नहीं, एक आंदोलन है — स्नेह, मानवीयता और समर्पण का। यह सभी के सहयोग, आशीर्वाद और मार्गदर्शन से निरंतर आगे बढ़ रही है और समाज में एक नई मिसाल कायम कर रही है।
वर्षगांठ पर शुभकामनाएं और धन्यवाद
इस प्रथम वर्षगांठ के पावन अवसर पर इस सेवा से जुड़े सभी शुभचिंतकों, सेवाभावी लोगों और सहयोगियों को ढेर सारी शुभकामनाएं और कोटि-कोटि धन्यवाद।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि यह सेवा इसी तरह हर जरूरतमंद तक स्नेह और भोजन की गर्माहट पहुंचाती रहे।